सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अधिकारियों द्वारा कथित अपराध में शामिल नाबालिग बच्चों के साथ किये जा रहे बर्ताव को लेकर उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग एवं दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग को को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस तमिलनाडु में अनाथालयों में बच्चों के शोषण से जुड़े मुकदमे 'एक्सप्लॉयटेशन ऑफ चिल्ड्रेन इन ऑर्फनेज इन स्टेट ऑफ तमिलनाडु बनाम भारत सरकार' मामले में न्यायमित्र अर्पणा भट की उस मिसलेनियस एप्लीकेशन पर जारी हुआ है जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस द्वारा थानों में नाबालिगों को कथित हिरासत में रखने और उन्हें यातना दिये जाने की ओर न्यायालय का ध्यान आकृष्ट कराया है। याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने दोनों राज्य सरकारों को तीन सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देने को कहा है। खंडपीठ ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और भारत सरकार को भी इस मामले की तहकीकात करने और तीन सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। भट ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है कि कोर्ट के पांच दिसम्बर 2018 के विशिष्ट निर्देश के बावजूद राज्य सरकारों के अधिकारियों द्वारा देश भर के चाइल्ड केयर संस्थानों में बच्चों के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है! सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेजे एक्ट की धारा 10 में कहा गया है कि कथित अपराध के आरोपी नाबालिग बच्चे को विशेष किशोर पुलिस इकाई या नामित बाल कल्याण अधिकारी के प्रभार में रखा जाना चाहिए, न कि नियमित पुलिस हिरासत में। साथ ही, धारा 12 में कहा गया है कि किशोर आरोपी के मामले में जमानत नियम है। "जे जे एक्ट की धारा 12 की उपधारा (1) यह पूरी तरह स्पष्ट के करता है कि किसी अपराध के आरोपी बच्चे को मुचलके के साथ या बिना मुचलके के भी जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए या किसी प्रोबेशन ऑफिसर की निगरानी में या किसी उपयुक्त व्यक्ति को सौंप दिया जाना चाहिए। इस मामले में केवल एक ही रोक लगाई गई है कि यदि बच्चे की रिहाई के बाद उसके अपराधियों के संपर्क में आने का खतरा हो या नैतिक शारीरिक या मानसिक खतरा हो या उसकी रिहाई से यदि न्याय प्रभावित हो तभी आरोपी बच्चे की जमानत निरस्त की जाएगी लेकिन इसके लिए लिखित कारण भी दर्ज करना होगा। यदि आरोपी बच्चे को जमानत नहीं भी मंजूर की जाती है तो उसे जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता। उसे ऑब्जरवेशन होम या किसी सुरक्षित स्थान पर रखा जाएगा।" इस अपवाद को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना जेजे बोर्ड का दायित्व है कि अपराध के आरोपी बच्चे यातना के शिकार न हों। खंडपीठ ने कहा, "देश के सभी किशोर न्याय बोर्ड को संबंधित प्रावधानों का शिद्दत से पालन करना चाहिए। हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि किशोर न्याय बोर्ड केवल मूक दर्शक बनने और केवल उसके सामने मामले आने की स्थिति में ही आदेश जारी करने के लिए नहीं बना है। वह उस तथ्यात्मक स्थिति का भी संज्ञान ले सकता है जब उसे पता चलता है कि एक बच्चे को जेल में या पुलिस लॉकअप में रखा गया है। यह सुनिश्चित करना जेजेबी का दायित्व है कि बच्चे को तत्काल जमानत मंजूर किया जाये या उसे ऑब्जर्वेशन होम या सुरक्षित स्थान पर भेजा जाये। संबंधित कानून का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, पुलिस भी नहीं कर सकती। " भट ने यह भी आरोप लगाया था कि दिशा-निर्देशों के जारी होने के 14 महीने बीत जाने के बाद भी सरकार ने चाइल्डकेयर संस्थानों में रखे गये बच्चों और उनका संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए किये जा रहे उपायों से संबंधित रिपोर्ट की एक प्रति उन्हें नहीं दी है। इस परिप्रेक्ष्य में कोर्ट ने एनसीपीसीआर और भारत सरकार को तीन सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 24 मार्च, 2020 की तारीख मुकर्रर की गयी है।
14 Feb 2020
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सुप्रीम कोर्ट:- बच्चों को किसी भी परिस्थिति में जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता
सुप्रीम कोर्ट:- बच्चों को किसी भी परिस्थिति में जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता
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बच्चों को जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता
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