14 Jan 2020

LATEST JUDGEMENT ON Hindu Succession Act 1956 | Joint Property का बटवारा कैसे होगा




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Diary Number33288-2008Judgment
Case NumberC.A. No.-008642-008642 – 200908-01-2020 (English)
Petitioner NameM.ARUMUGAM
Respondent NameAMMANIAMMAL AND ORS.
Petitioner’s AdvocateP. V. DINESH
Respondent’s AdvocateREVATHY RAGHAVAN
BenchHON’BLE MR. JUSTICE DEEPAK GUPTA, HON’BLE MR. JUSTICE ANIRUDDHA BOSE
Judgment ByHON’BLE MR. JUSTICE DEEPAK GUPTA
Hindu Succession Act 1956:- अधिनियम की धारा छह और आठ (Hindu Succession Act 1956 section 8 or 6) का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि हिन्दू पुरुष की मौत के बाद उसकी सम्पत्ति का खयाली बंटवारा (नोशनल पार्टिशन) होगा और यह उसके कानूनी वारिस को उसके अपेक्षित हिस्से के तौर पर हस्तांतरित (Transfer) होगा। इसलिए, इस तरह की सपत्ति ऐसे बंटवारे के बाद ‘संयुक्त परिवार (Joint Family) की सम्पत्ति’ नहीं रह जायेगी। ये वारिस संबंधित सम्पत्ति के ‘टिनेंट्स-इन-कॉमन’ के सदृश होंगे तथा तब तक संयुक्त कब्जा रखेंगे, जब तक इकरार विलेख के तहत उनकी संबंधित हिस्सेदारी की हदबंदी नहीं कर दी जाती।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर ने ‘एम अरुमुगम बनाम अम्मानियम्मल एवं अन्य’ के मामले में यह फैसला सुनाया। पृष्ठभूमि इस मामले के दोनों पक्षकार मूला गौंदर नामक व्यक्ति के बच्चे थे। मूला गौंदर की मृत्यु 1971 में हो गयी थी। मृतक के परिवार में उसकी विधवा, दो बेटे और तीन बेटियां थीं। मृत्यु से पहले मृतक ने कोई वसीयत नहीं की थी। वर्ष 1989 में मृतक की सबसे छोटी बेटी ने बंटवारे के लिए एक मुकदमा दायर किया था।

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मृतक के पुत्रों ने यह कहते हुए मुकदमे का विरोध किया था कि उनकी मां और बहनों ने संपत्ति पर अधिकार छोड़ने का विलेख (रिलीज डीड) तैयार किया था और उनके लिए अपनी सम्पत्ति छोड़ देने की घोषणा की थी। यह भी दलील दी गयी थी कि मां ने तब वादी (बहन) की संरक्षक (गार्जियन) की भूमिका निभाई थी, क्योंकि तब वादी नाबालिग थी। उसके बाद दोनों बेटों के बीच बंटवारा विलेख तैयार किया गया था जिस पर गवाह के तौर पर हस्ताक्षर करने वालों में वादी (बहन) का पति भी शामिल था।
वादी ने उसके बाद याचिका दायर की थी तथा यह कहते हुए रिलीज डीड को शुरुआती तौर पर ही अवैध करार देने की मांग की थी कि उसकी मां संरक्षक के तौर पर उसकी हिस्सेदारी का अधिकार छोड़ने के लिए अधिकृत नहीं थी। ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए मुकदमा खारिज कर दिया था कि वादी को वयस्क होने के तीन साल के भीतर ही ‘रिलीज डीड’ को चुनौती देनी चाहिए थी।

Hindu Succession Act 1956 पर हाईकोर्ट ने वादी की अपील पर ट्रायल कोर्ट के आदेश को निम्न तथ्यों के आधार पर निरस्त कर दिया था:-

1. मूला गौंदर की मौत के बाद भी कानूनी वारिसों के हाथों में यह सम्पत्ति ‘संयुक्त परिवार की सम्पत्ति’ बनी रही थी।


2. चूंकि यह संयुक्त परिवार की सम्पत्ति थी, मां संरक्षक के तौर पर नाबालिग वादी का हिस्सा नहीं छोड़ सकती।
3. इसलिए संबंधित ‘रिलीज डीड’ शुरुआती तौर पर ही अवैध था। हाईकोर्ट ने बहन के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसके बाद वादी के भाइयों में से एक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।


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