क्या है इच्छा मृत्यु, भारत में इच्छा मृत्यु पर कानून, एवं क्या है अरुणा शानबाग केस | What Is Euthanasia, Court verdicts on Euthanasia in India, Aruna Shanbaug case
काफी समय से हमारे देश में इच्छा मृत्यु के मुद्दे पर काफी विचार और विमर्श किया जा रहा था. जहां कई लोग इसके पक्ष में थे, वहीं कुछ लोगों की राय में इच्छा मृत्यु को कानूनी मंजूरी मिलना एकदम गलत था. लेकिन सालों से हमारे देश में इस मुद्दे पर हो रही इस बहस को हाल ही में अंत मिल गया और हमारे देश के सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु के कानून पर अपनी राय रखते हुए, इच्छा मृत्यु को सही करार दे दिया है. यानी अब अन्य कई देशों की तरह हमारे देश में भी इच्छा मृत्यु एक कानूनी अधिकार बन गया है.
भारत में इच्छा मृत्यु से जुड़े कानून के बारे में जानकारी लेने से पहले, आप लोगों का ये जानना काफी जरुरी है कि आखिर इच्छा मृत्यु क्या होती है और ये कितने प्रकार की होती है.
क्या होती है इच्छा मृत्यु (What Is Euthanasia / Iccha Mrityu)
किसी जानलेवा बीमारी से या फिर लाइलाज बीमारी से ग्रस्त लोगों को उनकी इच्छा से मृत्यु देने को इच्छा मृत्यु कहा जाता है. यानी अगर कोई इंसान बीमार है और उसको हुई बीमारी का कोई भी इलाज मौजूद नहीं है. तो वो अपने जीवन को सम्मान के साथ खत्म कर सकता है और उस व्यक्ति को सम्मान के साथ मृत्यु दी जा सकती है.
दुनियाभर में इच्छा मृत्यु दो प्रकार से दी जाती है, जिनमें से एक प्रकार की इच्छा मृत्यु को सक्रिय इच्छा मृत्यु (Active Euthanasia) कहा जाता है और दूसरी प्रकार की इच्छा मृत्यु को निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (Passive Euthanasia) के नाम से जाना जाता है. नीचे इन दोनों प्रकार के इच्छा मृत्यु के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है.
सक्रिय इच्छा मृत्यु क्या होती है (What Is Active Euthanasia) –
इस तरह की इच्छा मृत्यु के अंतर्गत पीड़ित इंसान को डॉक्टर की मदद से मृत्यु दी जाती है. डॉक्टर द्वारा पीड़ित व्यक्ति को जहरीली दवा या फिर इंजेक्शन देकर उसकी मृत्यु कर दी जाती है. हालांकि इस प्रकार की मृत्यु केवल कुछ ही परिस्थितियों में दी जाती हैं और ये परिस्थितियों इस प्रकार हैं- अगर किसी व्यक्ति को कोई लाइलाज वाली बीमारी हुई हो और उस बीमारी से वो काफी पीड़ित होने के साथ-साथ वेंटिलेटर के सहारे ही जीवित हो. इसके अलावा उस व्यक्ति के दिमाग ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया हो. इन सब परिस्थितियों से गुजर रहे व्यक्ति को ये मृत्यु दी जाती है.
केवल कुछ ही देश में इस तरह की इच्छा मृत्यु यानी सक्रिय इच्छा मृत्यु देने का कानून है. भारत सहित कई देश में इस प्रकार से मृत्यु देने के तरीके को एकदम गलत माना जाता है. इसलिए हमारे देश में इस प्रकार की मृत्यु यानी जहरीली दवा या फिर इंजेक्शन से किसी को नहीं मारा जाता है.
निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (What is passive euthanasia) –
इस प्रकार की इच्छा मृत्यु में किसी भी तरह की जहरीली दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से जीवन रक्षक उपकरण की मदद से जीवित है और वो व्यक्ति या फिर उसके परिवार वाले इच्छा मृत्यु के लिए गुहार लगाते हैं. तो उस व्यक्ति को जीवन रक्षक उपकरणों से हटा दिया जाता है और उसको वो दवा भी देने बंद कर दी जाती हैं जिनकी मदद से वो जीवित है.
अगर व्यक्ति लंबे समय से कोमा में हो तो उसके परिवार वाले उस व्यक्ति के लिए इच्छा मृत्यु की गुहार लगा सकते हैं. इस प्रकार के इच्छा मृत्यु के तरीके को दुनिया के ज्यादातर देशों द्वारा स्वीकार किया गया है. भारत में भी इस तरह की इच्छा मृत्यु के तरीके को ही हाल ही में मान्यता दी गई है.
सक्रिय और निष्क्रिय इच्छा मृत्यु में अंतर (Difference Between Active And Passive Euthanasia) –
ये दोनों तरीके किसी व्यक्ति से उसके जीवन छीनने से ही जुड़े हुए हैं. लेकिन इन दोनों तरीकों में जो सबसे बड़ा अंतर है, वो अंतर मृत्यु देने के तरीके में है. एक तरफ जहां सक्रिय तरीके में जहरीली दवा से मौत दी जाती है. वहीं दूसरे तरीके के अंतर्गत व्यक्ति को जीवन रक्षक उपकरण से हटा लिया जाता है और उसे उसके हाल पर ही छोड़ दिया जाता है.
सक्रिय और निष्क्रिय इच्छा मृत्यु में समानता (Similarities Between Active And Passive Euthanasia) –
इन दोनों तरह की मृत्यु में जो समानताएं हैं वो इस प्रकार हैं,-
- सक्रिय और निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के परिणाम एक ही होता है और वो परिणाम मृत्यु ही हैं. इसके अलावा ये दोनों तरह की मृत्यु केवल उन्हीं लोगों की दी जाती हैं जिनका जीवन लगभग खत्म हो चुका हो और वो दवाईयों के सहारे जीवित हो.
- इन दोनों तरह की इच्छा मृत्यु के लिए गुहार लगाने का तरीका एक ही है. यानी अगर व्यक्ति अपना फैसला लेने की स्थिति में नहीं होता है. तो उसके परिवार वालों के द्वारा उसे इच्छा मृत्यु देने का फैसला लिया जा सकता है.
भारत के कोर्ट का इच्छा मृत्यु पर फैसला (Court verdicts on Euthanasia in India)
भारत का नाम पहले उन देशों में शामिल था जहां पर इच्छा मृत्यु गैर कानूनी थी और किसी भी व्यक्ति को ये अधिकार नहीं था, कि वो अपने लिए इच्छा मृत्यु को चुन सके. लेकिन अभी हाल ही में हमारे देश में इसे वैध कर दिया गया है. यानी अगर कोई इंसान दवा और वेंटिलेटर के सहारे जीवित है, तो वो इंसान इच्छा मृत्यु ले सकता है. लेकिन भारत में केवल निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की ही इजाजत है और सक्रिय इच्छा मृत्यु अभी भी गैर कानूनी है.
निष्क्रिय इच्छा मृत्यु को ही क्यों दी गई मान्यता
निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के तरीके को दुनिया भर में ज्यादा मान्यता इसलिए दी जाती है. क्योंकि इसमें किसी प्रकार की जहरीली दवाई शामिल नहीं होती है. व्यक्ति का जीवन रक्षक उपकरण को पूरी तरह से बंद कर दिए जाता हैं, जिसके कारण उसकी मृत्यु अपने आप ही हो जाती है.
भारत में इच्छा मृत्यु कानून को मंजूरी मिलने की कहानी (Euthanasia Laws In India)
भारत में इच्छा मृत्यु कानून बनाने की लड़ाई साल 2009 के एक केस के चलते शुरू हई थी. 2009 में इच्छा मृत्यु से जुड़ा हुआ एक केस सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था. इस केस में अरुणा शानबाग नाम की एक महिला के लिए इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई गई थी. ये रिट याचिका जानी मानी पत्रकार और कार्यकर्ता पिंकी विरानी ने कोर्ट में दायर की थी और अपनी इस याचिका में पिंकी ने कहा था कि अरुणा शानबाग को वेंटिलेटर से हटा देना चाहिए और उन्हें इच्छा मृत्यु दे देनी चाहिए.
अरुणा शानबाग केस (Aruna Shanbaug case in hindi) –
अरुणा शानबाग एक नर्स थी, जिनके साथ साल 1973 में एक दर्दनाक हादसा हुआ था. इस हादसे के चलते इन्होंने अपने जीवन के करीब 42 साल कोमा में गुजारे थे और इनकी मौत साल 2015 में हुई थी.
अरुणा शानबाग किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में शानबाग कार्य करती थी. इसी हॉस्पिटल में एक दिन उनके साथ एक वार्ड ब्वॉय ने जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. कहा जाता है कि एक दिन जब शानबाग अपना कार्य करने के बाद, जब अपने कपड़े बदलकर अपने घर जाने की तैयारी कर रही थी, तभी वार्ड ब्वॉय सोहनलाल ने इन पर हमला कर दिया और इनका गला कुत्ते के पट्टे से दबा दिया था. ये पट्टा लोहे की चेन से बना हुआ था. जिसके कारण शानबाग की गले की एक नस दब गई थी, जिसके कारण वो बेहोश हो गई. शानबाग के बेहोश होने के बाद सोहनलाल ने उनके कान से सोने की बालियां निकाल ली थी और शानबाग को इसी हालत में छोड़कर भाग गया था. जिस वक्त शानबाग के साथ ये हादसा हुआ था, उस वक्त उनकी आयु महज 23 वर्ष की थी और इसी साल उनकी शादी भी होने वाली थी. शानबाग के साथ जिस व्यक्ति ने ये सब किया था, उसे केवल सात साल की ही सजा हुई थी.
उस रात शाबनाग के साथ हुए इस हादसे ने शानबाग की जिंदगी पूरी तरह से बदल दी थी और उनकी जिंदगी वेंटिलेटर पर निर्भर हो गई थी. दरअसल अरुणा का गला दबाने से उनके दिमाग तक खून नहीं पहुंच पाया था. जिसके कारण उन्हें लकवा हो गया था और उनके देखने की शक्ति भी चली गई थी.
शानबाग की इच्छा मृत्यु पर कोर्ट का फैसला (Supreme Court Judgement On Aruna Shanbaug Case)–
शानबाग की इच्छा मृत्यु की सुनवाई पर फैसला साल 2011 में आया था. कोर्ट ने अपना फैसला देते हुए ये निर्णय लिया था कि अरुणा को निष्क्रिय इच्छा मृत्यु नहीं दी जाएगी और उनको वेंटिलेटर से नहीं हटाया जाएगा. कोर्ट के इस फैसले पर जहां कई लोग नाराज थे. कई लोगों ने इस फैसले को सही करार दिया था.
क्यों लिया था कोर्ट ने ये फैसला-
कोर्ट के पास जब ये मामला आया था, तो कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया था. इस बोर्ड को इस मामले की जांच करने और इस मामले में राय देने को कहा गया था. इस बोर्ड के डॉक्टरों ने जब अरुणा की हालात के बारे में अपनी जांच कि तो पाया कि मस्तिष्क मृत नहीं था और कुछ वे स्थितियों में जवाब दे रही थी. जिसके बाद ये बोर्ड इस निर्णय पर पहुंचा था, कि इस मामले में यूथनेसिया की कोई आवश्यकता नहीं है और इसी बोर्ड के फैसले पर अदालत ने अपना फैसला सुनाया था.
केईएम अस्पताल के कर्मचारी सहित बॉम्बे नगर निगम ने भी इस मामले में अपनी याचिका दायर की थी. अपनी याचिका में इन्होंने अरुणा के लिए इच्छा मृत्यु का विरोध किया था. इस अस्पताल की नर्सों ने जो कि अरुणा की देखभाल कर रही थी, उन्होंने कहा था कि वो अरुणा की सेवा करने में बहुत खुश हैं. अरुणा को इच्छा मृत्यु नहीं दी जानी चाहिए.
इस फैसले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छा मृत्यु के लिए दिशा निर्देश तैयार किए थे. इन दिशा निर्देशों के अनुसार, किसी व्यक्ति को निष्क्रिय इच्छा मृत्यु देने के लिए उस व्यक्ति को वेंटिलेटर से हटा दिया जाएगा और उसको दवा देना बंद कर दी जाएगा. लेकिन ऐसा तभी किया जाएगा जब व्यक्ति का दिमाग पूरी तरह से काम करना बंद कर देगा.
साल 2014 में फिर इस फैसले पर हुई सुनवाई-
साल 2014 में एक एनजीओ द्वारा दायर पीआईएल की सुनवाई करते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने पाया था कि अरुणा शानबाग मामले में जो निर्णय लिया गया था वो गलत था. जिसके बाद अदालत ने इस मुद्दे को संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया था. इस संवैधानिक पीठ के पांच न्यायाधीशों को जिम्मेदारी दी गई थी, कि वो ये तय करें कि हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे में, अधिकार के साथ मरने का हक होना चाहिए की नहीं. जिसके बाद साल 2018 में इस पीठ ने ये फैसला लिया कि कठोर दिशा निर्देशों के तहत भारत में निष्क्रिय इच्छा मृत्यु को कानूनी बना देने चाहिए.
क्या है इच्छा मृत्यु पर भारत का कानून (The Supreme Court Allows Passive Euthanasia)–
इच्छा मृत्यु पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया था और कोर्ट के निर्णय के मुताबिक इंसान को जिस तरह से जीने का हक है, ठीक उसी तरह मरने का भी हक होना चाहिए. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अब भारत में भी निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (passive euthanasia) की इजाजत होगी.
हालांकि अभी सरकार को इच्छा मृत्यु से जुड़ा कानून तैयार करना है और जब तक ये कानून तैयार नहीं हो जाता है, तब तक अगर कोई व्यक्ति इस प्रकार की मृत्यु यानी निष्क्रिय इच्छा मृत्यु लेना चाहता है, तो उसको नीचे बताई गई गाइडलाइन को फॉलो करना होगा और अपनी एक लिविंग विल बनानी होगी.
लिविंग विल यानी जिंदगी की वसीयत करने की प्रक्रिया (Process of Making a Living Will) –
उच्चतम न्यायालय ने लिविंग विल को लेकर एक गाइडलाइन तैयार की है और इसी गाइडलाइन के आधार पर ही इंसान को मृत्यु दी जा सकती है. इस गाइडलाइन से जुड़ी जानकारी इस प्रकार हैं-
कौन कर सकता है जिंदगी की वसीयत –
- 18 वर्ष से ऊपर वाली आयु का व्यक्ति अपनी जिंदगी की वसीयत लिख सकता है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक जिंदगी की वसीयत लिखने वाले व्यक्ति को दिमागी रूप से सेहतमंद होना अनिवार्य है और उसे पता होना चाहिए कि वो किस चीज के लिए अपनी वसीयत लिख रहा है. इतना ही नहीं उस व्यक्ति को इस विल के नतीजों की भी जानकारी अच्छे से होनी चाहिए.
- जिंदगी की वसीयत बिना किसी दबाव के लिखी जानी चाहिए और वसीयत लिखित रूप में होने पर ही मान्य मानी जाएगी. इसके अलावा वसीयत एकदम स्पष्ट होनी चाहिए. यानी किन हालातों में होने पर उस व्यक्ति को मृत्यु दी जानी चाहिए, ये स्पष्ट रूप से उस वसीयत में लिखा होना चाहिए.
- वसीयत लिखने वाले व्यक्ति द्वारा, वसीयत में ये भी लिखा होना चाहिए कि कब उसका इलाज रोका जा सकता है. यानी उसकी बीमारी की परिस्थितियों में उसका इलाज बंद करना होगा. जैसे कि अगर वो व्यक्ति कोमा में चले जाते है या फिर वेंटिलेटर के सहारे ही जीवित है तो, उस समय में डॉक्टरों को क्या करना चाहिए.
- कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार वसीयत में उस व्यक्ति को ये भी लिखना होगा, कि अगर वो फैसला लेने की हालत में नहीं होता है, तो उसकी जगह, कौन व्यक्ति उसके जीवन का फैसला ले सकता है.
- अगर किसी व्यक्ति ने एक से अधिक वसीयत यानी विल लिखी होगी, तो ऐसे हालातों में उसकी उस वसीयत को मान्यता दी जाएगी. जो उसने सबसे आखिरी में लिखी होगी. इसके अलावा इस लिविंग विल को बनाते समय दो गवाहों की भी जरुरत होगी.
- ये विल केवल प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने ही लिखी जाएगी और इस विल को बनाते समय मजिस्ट्रेट के साथ-साथ दो गवाहों का भी होना जरुरी होगा. इस विल पर इन सबके हस्ताक्षर भी होना अनिवार्य होगा.
- जिस व्यक्ति ने अपनी ये वसीयत लिखाई होगी उस व्यक्ति के परिवार वालों को इस वसीयत के बारे में जानकारी भी होगी चाहिए. यानी इस वसीयत के रजिस्टर्ड होने के बाद, इस वसीयत की जानकारी वसीयतकर्ता के परिवार को दी जाएगी.
कब मान्य होगी ये लिविंग विल –
- जिस इंसान ने ये विल करवाई होगी और अगर उस इंसान को कोई ऐसी बीमारी हो जाती है, जिसके कारण वो कोमा में चला जाता है या फिर उसके सही होने की कोई भी गुंजाइश नहीं बचती है, तो उस स्थिति में ये विल मान्य मानी जाएगी.
- इस विल के बारे में उस व्यक्ति का इलाज कर रहे डॉक्टर को जानकारी दी जाएगी. जिसके बाद इस विल पर हस्ताक्षर करने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट से इस विल से जुड़ी प्रमाणिकता जांच करवाई जाएगी.
- विल को सही पाने के बाद, जिस अस्पताल में उस व्यक्ति का इलाज चल रहा होगा. उस अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को इस विल पर अपना फैसला लेना होगा.
- कोर्ट की गाइडलाइन्स के मुताबित इस बोर्ड में 20 साल के अनुभव वाले विभिन्न क्षेत्रों के डॉक्टर शामिल होने चाहिए और इन डॉक्टरों द्वारा मरीज का परीक्षण किया जाएगा. जिसके बाद इन डॉक्टरों द्वारा ये तय किया जाएगा कि उस व्यक्ति की बीमारी का इलाज हो सकता है कि नहीं और वो व्यक्ति इस हालात में है कि उसे इच्छा मृत्यु दे देनी चाहिए कि नहीं.
- अगर मेडिकल बोर्ड ये पता है कि उस व्यक्ति के सही होने की कोई उम्मीद नहीं है और वो व्यक्ति किसी भी तरह का प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा है, तो वो बोर्ड उस व्यक्ति की वसीयत को लागू करने की राय दे सकता है.
- डॉक्टरों की और से इस विल को मंजूरी मिलने के बाद, उस अस्पताल को इस चीज की जानकारी अपने एरिया के संबंधित कलेक्टर को जल्द से जल्द देनी होगी.
- ये जानकारी मिलने के बाद कलेक्टर, अपने जिला के चिकित्सा अधिकारी को इस मामले की जांच सौंपेगा और एक चिकित्सा बोर्ड का निर्माण किया जाएगा. जिसे इस केस की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी.
- इस बोर्ड के डॉक्टरों द्वारा अस्पताल का दौरा किया जाएगा और अपने इस दौरे के दौरान ये डॉक्टर मरीज की स्थिति की जानकारी लेंगे. अगर मृत्यु की इच्छा रखने का वाला व्यक्ति बोलने की स्थिति में होगा तो उससे उसकी राय भी मांगी जाएगी. वहीं अगर वो व्यक्ति बोलने की हालत में नहीं होता है, तो उसके परिवार वालों से बातचीत की जाएगी.
- बातचीत और जांच करने के बाद अगर बोर्ड को लगता है कि उस व्यक्ति को जीवन रक्षक उपकरण से हटा देने चाहिए तो वो इस बात की जानकारी संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को देगा.
- जानकारी मिलने के बाद मजिस्ट्रेट अस्पताल में मरीज को देखने जाएगा और हर तरह की चीज को सुनिश्चित करने के बाद, वसीयत पर अमल करने का आदेश देगा. जिसके बाद इस व्यक्ति को इच्छा मृत्यु दे दी जाएगी.
मेडिकल बोर्ड अगर इच्छा मृत्यु देने से इनकार करे तो क्या कर सकते हैं?
- अगर किसी व्यक्ति को मेडिकल बोर्ड द्वारा इच्छा मृत्यु देने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति के परिवार वाले कोर्ट में मदद मांग सकते हैं.
- कोर्ट में इस तरह का मामला आने के बाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एक डिवीजन बेंच का गठन करेगा. इस बेंच को इस मामले की जांच करनी होगी और एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना होगा जो कि इस केस में अपनी राय देगा. जिसके बाद हाईकोर्ट बोर्ड की राय पर अपना फैसला लेगा.
- वहीं अगर किसी व्यक्ति ने अपनी लिविंग विल नहीं बनाई है तो इस स्थिति में भी उसके परिवार वालों को कोर्ट जाना होगा. जिसके बाद कोर्ट मेडिकल बोर्ड के आधार पर ही फैसला लेगा.
दुनिया में इच्छा मृत्यु से जुड़े कानूनों की जानकारी (Countries Where Euthanasia Is Legal)–
दुनिया के अलग-अलग देशों में इच्छा मृत्यु से जुड़े कानून के विभिन्न पैरामिटर हैं. जिनके बारे में नीचे जानकारी दी गई है.
अमेरीका – अमेरिका देश में भारत की तरह सक्रिय इच्छा मृत्यु को गैर कानूनी माना जाता है. लेकिन निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की इजाजत इस देश में भी है. यहां की सरकार ने भी यहां के लोगों को सम्मान से मरने का हक दे रखा है.
स्विट्जरलैंड – इस देश में ऐसे मरीजों की आत्म हत्या में मदद करना कानूनी है, जिनकी बचने की कोई भी आस नहीं है. इस देश में दूसरे देशों के नागरिकों को भी, उनकी मृत्यु में मदद करना कानूनी है. इसलिए इस देश को सुसाइड टूरिज्म भी कहा जाता है. क्योंकि जिन लोगों के देश में इच्छा मृत्यु गैर कानूनी है वो इस देश में आकर इच्छा मृत्यु लेते है. इस देश के कानून के मुताबिक अगर कोई अपने स्वार्थ के लिए किसी भी व्यक्ति की, उसकी मृत्यु में मदद करता है तभी उसको गैर कानूनी माना जाता है.
नीदरलैंड्स – इस देश में दोनों तरह की इच्छा मृत्यु की इजाजत है और साल 2016 तक इस देश में इच्छा मृत्यु के कुल 6091 मामले सामने आए थे. जो कि इस देश में, इस साल में हुई कुल मृत्यु के 4 % थे.
बेल्जियम – इस देश में भी इच्छा मृत्यु को मंजूरी मिल चुकी है. इस देश में दोनों प्रकार की इच्छा मृत्यु दी जाती है और इस तरह की मृत्यु को अपराध की श्रेणी में नहीं गिना जाता है.
ऊपर बताए गए देशों के अलावा, कनाडा, कोलम्बिया, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, आयरलैंड, इजरायल, जापान, मेक्सिको जैसे देश में भी इच्छा मृत्यु को कोर्ट द्वारा मान्यता दी गई है. हालाकिं हर देश के अपने अपने कुछ नियम हैं. जिनके आधार पर ही इच्छा मृत्यु दी जा सकती है.
इच्छा मृत्यु देने के फायदे (Advantages of Euthanasia) –
इच्छा मृत्यु का अधिकार मिलने से कई ऐसे लोग हैं, जिनको बिना किसी तकलीफ का सामना किए अपने जीवन को समाप्त करना का हक मिल जाता है. नीचे हमने इच्छा मृत्यु से जुड़े कुछ फायदों के बारे में जानकारी दे रखी है.
पीड़ा की समाप्ति होती है –
इच्छा मृत्यु का मुख्य फायदा ये है कि इसकी मदद से बीमार लोग जो कि किसी ऐसी बीमारी से लड़ रहें हैं, जिसका कोई इलाज नहीं है और उनको किसी और पर निर्भर रहना पड़ रहा है. वो अपने जीवन का अंत कर सकते हैं. अक्सर देखा जाता है कि कई लोग ना कुछ बोल सकते हैं और ना कुछ कर सकते हैं. वो अपने परिवार वालों और दवाईंयों के सहारे ही जीवित रहे पाते हैं. ऐसी स्थिति में इच्छा मृत्यु के जरिए ऐसे लोग अपने जीवन को किसी भी पीड़ा के बिना खत्म कर सकते हैं.
मरने का अधिकार-
जिस तरह से हर व्यक्ति को अपनी तरह से जीवन जीने का अधिकार है, ठीक उसी तरह से इच्छा मृत्यु बीमार लोगों को मरने का भी अधिकार देती है. अगर कोई इंसान लंबे समय से किसी पीड़ा में है और उस पीड़ा का कोई इलाज नहीं है, तो ऐसी सूरत में इच्छा मृत्यु उस व्यक्ति को सम्मान से मरने का अधिकार देती है.
इच्छा मृत्यु के नुकसान (Disadvantages of Euthanasia) –
हर चीज के कुछ फायदे होते हैं, तो कुछ नुकसान भी होते हैं. ठीक इसी तरह से इच्छा मृत्यु के भी कुछ नुकसान हैं और इन्हीं नुकसानों के मद्देनजर कई देशों ने अभी तक, अपने देश में इच्छा मृत्यु को मान्यता नहीं दी है. नीचे हमने आपको इच्छा मृत्यु से जुड़े कुछ नुकसानों का विवरण किया है.
हो सकता है इसका गलत फायदा-
अक्सर देखा जाता है कि कई लोग बुर्जुग लोगों को बोझ की तरह समझते हैं और उनसे अपना पीछा छुड़ाना चाहते हैं. ऐसे में इच्छा मृत्यु का सहारा लेकर किसी की भी व्यक्ति को मृत्यु दी जा सकती है. हालांकि जिन देशों में इच्छा मृत्यु का मान्यता मिली हुई है. उन देशों में ऐसे नियम बनाए गए हैं ताकि इसका गलत फायदा कोई व्यक्ति ना उठा सके. लेकिन इन नियमों के बावजूद भी इच्छा मृत्यु का गलत फायदा उठाए जाने का डर बना रहता है.
किसी को भी नहीं है मरने का अधिकार-
जीवन भगवान की देन हैं और ऐसे में किसी भी व्यक्ति को ये अधिकार नहीं है कि वो अपने जीवन का समाप्त करे. कई धर्म में कहा जाता है कि जीवन और मृत्यु भगवान के हाथ में है ना कि मुनष्य के. ऐसे में इच्छा मृत्यु कुदरत के नियमों के विरुद्ध है.
डॉक्टर के पेशे के है खिलाफ-
इच्छा मृत्यु की इच्छा रखने वाले इंसान को डॉक्टर द्वारा, दी जानेवाली दवा और अन्य मेडिकल सुविधाएं बंद कर दी जाती हैं, जिनके सहारे वो सांस ले पा रहा है. उस व्यक्ति को उसके हाल पर ही छोड़ दिया जाता है और ऐसा करना डॉक्टरों के पेशे के खिलाफ माना जाता है.
मृत्यु को मिलेगा बढ़ावा-
दुनिया भर में कई बीमारियां मौजूद हैं, जिनका इलाज काफी परेशानियों और दर्द भरा होता है. लेकिन मनोबल के दम में इन बीमारियों से जीता जा सकता है. लेकिन इच्छा मृत्यु के कारण लोग इन तकलीफ से बचने के लिए इसका सहारा ले सकते हैं. इच्छा मृत्यु के कारण कई लोगों के अंदर जीने की जगह मृत्यु की इच्छा बढ़ जाती है और वो लोग अपनी बीमारी से लड़ने की जगह आसान रास्ता चुनते हैं
No comments:
Post a Comment