4 Mar 2020

भारत के संविधान की विशेषताएं बताइए

भारतीय संविधान सभा की निर्माण प्रक्रिया और उसकी प्रमुख विशेषताएं


भारत के संविधान की विशेषताएं बताइए
भारत के संविधान की विशेषताएं बताइए

हमारे संविधान का स्वरूप विशाल और लोक कल्याणकारी है । जो एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करता है| 

भारत का संविधान अंशता 26 नवंबर 1949, और पूरी तरह से 26 जनवरी 1950 में प्रभावी हुआ था। 26 नवंबर 1949 को लागू होने वाले प्रावधान निम्नलिखित हैं 

  • अनुच्छेद 5 संविधान लागू होते समय नागरिकता देना। 
  • अनुच्छेद 6 पाकिस्तान से भारत में आ प्रवर्तित व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार ।
  • अनुच्छेद 7 भारत से पाकिस्तान, पाकिस्तान से भारत आकर अब्रजित होने वाले व्यक्तियों की आना आनागरिकता।
  • आर्टिकल 8 भारत के बाहर आवास करने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों की नागरिकता ।
  • आर्टिकल 9 स्वेच्छा से विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त करने वाले व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं होंगे ।
  • आर्टिकल 60 राष्ट्रपति द्वारा शपथ व प्रति ज्ञान ग्रहण ।
  • अनुच्छेद 324 चुनाव का पर्यवेक्षण निर्देशन एवं नियंत्रण एक चुनाव आयोग में विहित होगा ।
  • आर्टिकल 366 परिभाषाएं ।
  • आर्टिकल 367 निर्वाचन।
  • आर्टिकल 379,380, 388,391- आंतरिक संसद का स्पीकर इत्यादि अनुच्छेद 379 से 391 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 द्वारा निकाल दिया गया है।
  •  article 392  संक्षिप्त शीर्षक।
  • आर्टिकल 394 संविधान का प्रारंभ।


अनुच्छेद 393 में संक्षिप्त शीर्षक उल्लेखित है कि इस संविधान का नाम भारत का संविधान द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया है। इसके पूर्व भारत का प्रशासन भारत सरकार अधिनियम 1935 के द्वारा होता था यदि नियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित था जो इस बात का घोटक था कि भारत पर ब्रिटेन की संप्रभुता थी 26 जनवरी 1950 को भारत को एक संप्रभु हुआ गणतंत्र राज्य के रूप में स्थापित कर दिया गया है भारतीय संविधान का मूल एवं प्रमुख स्रोत भारत सरकार अधिनियम 1935 है।

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।




  1. भारतीय संविधान एक विलक्षण विधि दस्तावेज है यूनिक लीगल डॉक्यूमेंट है यह विशेष प्रकार के आदर्श अंतर वलित करती है जो भारतीय समाज में राजनीतिक समाधि कथा दार्शनिक मूल्यों को एक ही दस्तावेज में प्रतिबिंबित करता है अर्थात यह एक में सब कुछ है यह भारत के सामाजिक तथा दार्शनिक राजनीतिक मूल्यों का सिर्फ सोपान है जिसे संशोधित करना कठिन है और जो आने वाले भारतीय जनमानस के आचरण व मूल्यों को दिशा निर्देशित करती रहेगी ऐतिहासिक विरासत को लपेटे हुए यह वर्तमान भारतीय समाज की आधारशिला तो है ही यह इस बात का भी निर्धारण करती है कि भारत की राजनीतिक सामाजिक और राजनैतिक भविष्य क्या होगा और क्या होना चाहिए।
  2. भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक विस्तृत संविधान है इसका निर्माण 22 भागों में विभाजित करके 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूची के साथ किया गया था वर्तमान समय में जनवरी 2013 में पारित 98 संविधान संशोधन अधिनियम के पश्चात इसमें 12 अनुसूचियां हैं 22 भागों में से भाग 7 को नो वे संविधान संशोधन अधिनियम 1956 द्वारा निर्देशित कर दिया गया है और 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा भाग 4 ए तथा 74 वें संशोधन 1942 द्वारा जो नगरपालिका उनसे संबंधित है भाग 14 जोड़ दिया गया है अतः वर्तमान समय में 2013 के 98 संविधान संशोधन के पश्चात संविधान के प्रभावित भागों की संख्या 22 की है जबकि प्रभावी अनुच्छेदों की संख्या बढ़कर 448 हो गई है।
  3. आधुनिक संविधान के सभी प्रमुख तत्वों का इसमें समावेश किया गया है उदाहरण के लिए ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था पर आधारित सामाजिक मन तृप्त व उत्तरदायित्व राज्य प्रमुख राष्ट्रपति तथा सरकार प्रमुख प्रधानमंत्री पद दो भिन्न व्यक्तियों में निहित होता है संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से उद्देशिका मूलभूत अधिकार व स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका संसद तथा न्यायपालिका का संवैधानिक पृथ्वी की कारण एवं संविधान संशोधन प्रक्रिया का समावेश किया गया है आयरलैंड से संविधान के राज्य के नीति निर्देशक तत्व तथा जर्मनी के विमल गणतंत्र से संविधान से आपातकालीन स्थिति की घोषणा तथा कनाडा व ऑस्ट्रेलिया से संघीय संरचना में केंद्रीयकरण के प्रवृत्ति को अपनाया गया है उद्देशिका में उदारता समानता राजनीतिक तथा आर्थिक सामाजिक न्याय का सिद्धांत विहित है।
  4. संख्या व्यवस्था में शक्तिशाली केंद्रीकरण की प्रवृत्ति है जो भारत के ऐतिहासिक राजनीतिक अनुभव पर आधारित है जो देश की एकता व अखंडता को संरक्षित रखने के लक्ष्य से किया गया है।
  5. राष्ट्रपति केवल नाम मात्र का शासन अध्यक्ष होता है और अमेरिका के राष्ट्रपति के विपरीत उसके विशेष अधिकार अत्यधिक सीमित है अमेरिकी राष्ट्रपति के पास जेबी निषेध अधिकार जिसे पॉकेट वेटो की शक्ति होती है कहा जाता है जबकि भारतीय राष्ट्रपति के पास केवल स्थानीय विशेष अधिकार जैसे सस्पेंसिव वेटो पावर कहा जाता है होता है और वह किसी विधेयक को इसी सत्र में ही केवल पुनर्विचार हेतु मंत्रिपरिषद के सामने प्रस्तुत कर सकता है किंतु पुनः पारित हुआ उसके पास भेजे गए विधेयक पर हस्ताक्षर करना उसकी संवैधानिक बाध्यता है।
  6. भारत 3 में विहित मूल अधिकारों के साथ मूल कर्तव्य भी संविधान के भाग 4 ए के अंतर्गत अनुच्छेद 51a में उल्लेखित है जो 42 वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए हैं।
  7. भाग 4 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्व भारतीय संविधान के एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की प्रवृत्ति की अवधारणा पर आधारित है जो आयरिश संविधान से लिया गया है।
  8.  संविधान के अनुच्छेद 14 15 तथा 16 एक में डायसी के विधिक शासन के सिद्धांत को आंशिक रूप से निरूपित किया गया है।
  9.   इसके अतिरिक्त ने में प्रावधानों में विधिक शासन के तत्व परिलक्षित होते हैं।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 124 (2), (4), (5), 121 तथा 125)

न्यायिक पुनर्विलोकन (अनुच्छेद 32, 226 ,132, 133, 134 136, 137 तथा 142)


18 साल के प्रत्येक नागरिक को जाति धर्म इत्यादि के आधार पर भेदभाव से रहित मतदान का अधिकार है।

बोले कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपराधों के दो सिद्धि के संबंध में संरक्षण 6 से 14 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार छुआछूत तथा शोषण के विरुद्ध अधिकार संविधान की विशेषताएं हैं।

अनुच्छेद 352 356 धारा 360 क्रमशः राष्ट्रपति द्वारा विभिन्न परिस्थितियों जैसे युद्ध सशस्त्र विद्रोह या बाहरी आक्रमण से उत्पन्न संकट राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल होने की स्थिति में तथा वित्तीय संकट में राष्ट्रपति द्वारा आपातकालीन अधिकारों के प्रयोग से संबंधित है।

वयस्क मताधिकार के प्रयोग के लिए 61 वें संविधान संशोधन द्वारा मतदान उम्र घटाकर 18 साल कर दी गई है मूल संविधान में यह 21 साल थी।

अनुसूचित जातियों और जनजातियों तथा शैक्षणिक व सामाजिक रूप से अन्य पिछड़े वर्गों के लिए विशेष आरक्षण की व्यवस्था की गई है ताकि उन्हें अन्य वर्गों के साथ समानता के स्तर पर लाया जा सके इसलिए भाग 4 में अनुच्छेद एकता 46 के अंतर्गत राज्य पर अनुसूचित जातियों जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों को प्रोन्नत करने का दायित्व भी अधिकृत किया गया है।

एक राष्ट्रीय भाषा हिंदी सहित आठवीं अनुसूची में कुल 22 भारतीय भाषाओं को समाहित किया गया है।


नीति निदेशक तत्वों के सिद्धांतों के अनुच्छेद 48 ए के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण का दायित्व राज्य पर है जो आज विश्व की सर्वप्रथम समस्याओं में से एक हो गई है और किसके संरक्षण प्रोन्नत प्रोत्साहन हेतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास चल रहे हैं।

अनुच्छेद 50 के अंतर्गत कार्यपालिका को न्यायपालिका से पृथकीकरण करने का राज्य का दायित्व है ।

अनुच्छेद 51 के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय विधि में शांति और सुरक्षा में अभिवृद्धि करने का भारत राज्य को प्रयासरत रहने का दायित्व है भाग 4 में होने के कारण यह न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है।

ग्राम पंचायत के संगठन का राज्य था एक अनुच्छेद 40 इत्यादि ऐसे प्रावधान है जो भारतीय संविधान को विस्तृत बनाने के साथ-साथ कल्याणकारी राज्य स्थापना की आधारशिला रखते हैं।

42 वें संविधान संशोधन द्वारा 10 मूल कर्तव्य जोड़े गए जो भाग 4 ए में स्थापित है।


  1. 86 वें संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 21a तथा 51(k) के जोड़ा गया और वर्तमान में मूल कर्तव्य की संख्या 11 है तथा अनुच्छेद 45 के अंतर्गत 14 वर्ष तक के अनिवार्य बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान करके कल्याणकारी राज्य स्थापना की आधारशिला सुदृढ़ की गई है।
  2. संविधान संशोधन प्रक्रिया में अनुच्छेद 368 द्वारा कठोरता तथा लचीलापन का सम्मिश्रण किया गया है ताकि संविधान के मूल ढांचे को पशुओं में रखते हुए उसे समय के अनुसार तथा सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप गतिशील बनाए रखा जा सके यह संशोधन प्रक्रिया तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका संघ से उधार ली गई है।
  3. भारतीय संविधान में प्रथम संविधान संशोधन 1951 में हुआ जिसके द्वारा अनुच्छेद 15 (4 )अनुच्छेद 31A अनुच्छेद 31 B भी जोड़ा गया नौवीं अनुसूची का प्रवेश किया गया तथा अनुच्छेद 19 (2) तथा (6 )को प्रतिस्थापित किया गया।
  4.  संविधान के अनुच्छेद 343 में देवनागरी लिपि में हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई है।
  5. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में उल्लेखित है कि इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा Union of States।
  6. राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया।
  7. अनुच्छेद 3 के अंतर्गत संसद साधारण कानून बनाकर नए राज्यों का निर्माण एवं वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों सीमाओं के नामों इत्यादि को बदल सकती है किंतु इसके लिए विधेयक राष्ट्रपति की संस्तुति पर ही लिया जा सकता है किंतु संबंध राज्य की विधायिका के पास उसका विचार रखने के लिए राष्ट्रपति द्वारा उस विधेयक को उसे संदर्भित करना आवश्यक है यदि कि राज्य की सहमति की आवश्यकता नहीं है।

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