Supreme Court Judgement on Rent Agreement - मकान मालिक उचित किराये के लिए एग्रीमेंट के बीच में आवेदन कर सकता है
केस टाइटल: एन मोतीलाल बनाम फैसल बिन अली
केस नं : CIVIL APPEAL NO.710 OF 2020
कोरम: जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह
सुप्रीम कोर्ट ने मकान मालिक और किरायेदार के बीच किराये के लिए हुए मतभेद पर विचार करते हुए तेलंगाना बिल्डिंग (लीज़, रेंट एंड एविक्शन) कंट्रोल एक्ट, 1960 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए कहा है कि मकान मालिक और किराएदार के बीच तय किये गए किराए की वैधता-अवधि के दौरान उचित किराए के निर्धारण के लिए मकान मालिक आवेदन कर सकता इस पर कोई रोक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में कहा गया था कि मकान मालिक अनुबंधित किराए से बंधा हुआ है और अनुबंध (Agreement) की अवधि के दौरान उसे किराया बढ़ाने के लिए आवेदन दायर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
यह दलील दी गई थी कि मकान मालिक को किराए में वृद्धि के लिए आवेदन दायर करने की अनुमति देना, भले ही वह अनुबंध द्वारा बाध्य हो, कुछ ऐसा होगा जो रेंट कंट्रोल कानून के खिलाफ है, जिसकी व्याख्या इस प्रकार की जानी चाहिए कि किरायेदार अत्यधिक किराए से बचाया जा सके।
तेलंगाना रेंट कंट्रोल एक्ट के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए जस्टिस अशोक भूषण और एमआर शाह की पीठ ने कहा:
उपर्युक्त प्रावधान किराएदार और मकान मालिक दोनों को उचित किराया तय करने के लिए आवेदन करने का अधिकार देता है। धारा 4 (1) के प्रावधान को इस तरीके से नहीं पढ़ा जा सकता कि यह अनुबंधित किराए पर लागू नहीं है। रेंट कंट्रोल कानून किरायेदार और मकान मालिक दोनों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। इस घटना में अपीलकर्ताओं ने स्वीकार किया है कि किरायेदारी के अनुबंध की वैधता-अवधि के दौरान कोई भी उचित किराया तय करने के लिए आवेदन दायर नहीं कर सकता है, उक्त प्रावधान किरायेदार और मकान मालिक दोनों के लिए हानिकारक होगा।
कोर्ट ने इसे उदाहरण के साथ समझाया:
''एक किरायेदार, जिसे मकान की तत्काल आवश्यकता होती है, मकान मालिक के साथ एक अनुबंध करता है, जहां उसे परिस्थितियों के दबाव में बहुत ज्यादा किराए देने पर सहमत होना पड़ता है, अगर किरायेदार को अनुबंध की अवधि के दौरान उचित किराए के लिए आवेदन करने का अधिकार नहीं है, तो उक्त प्रावधान किरायेदार के खिलाफ कठोरता से काम करता है। उचित किराए के निर्धारण की अवधारणा किरायेदार के साथ-साथ मकान मालिक के लिए समान रूप से काम करती है।
अधिनियम का उद्देश्य यह है कि न तो मकान मालिक को मकान से उचित किराए से अधिक किराया लेना चाहिए और न ही किरायेदार को उचित किराए से अधिक किराया देने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। धारा 4 के तहत लाई गई वैधानिक योजना किरायेदार के साथ-साथ मकान मालिक के लिए भी फायदेमंद है।"
मेसर्स रावल एंड कंपनी बनाम के.जी. रामचंद्रन, 1974 (1) एससीसी 424, मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि उचित किराए के निर्धारण के लिए आवेदन मकान मालिक और किरायेदार दोनों कर सकता है, जिसे अनुबंधित अवधि के दौरान भी किया जा सकता है।
मामले में एक और विवाद यह था कि केंद्र सरकार, आवास और शहरी विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों के लिए एक मॉडल रेंट कंट्रोल लेजिस्लेशन्स जारी किया है, जो अनुबंधित किरायेदारी की अवधि के दौरान उचित किराए के निर्धारण के लिए आवेदन से मकान मालिक को रोकता है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मॉडल लेजिस्लेशन्स केवल दिशा-निर्देश हैं, जो किसी भी तरह से 1960 के अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकते हैं, जो अभी भी प्रभावी हैं।
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