4 Jan 2019

पीडिता की Body पर चोट के निशान न होने का ये मतलब नही की संबंध उसकी मर्जी...



Criminal Appeal No 713 of 1997

State of Maharastra
Vs. Macchindra @ Babdu Gangadhar Sonawar

दोस्तो Bombay High Court का फैसला बडा ही सराहनीय है जिसमे हाई कोर्ट ने कहा बलात्कार की शिकार लड़की के शरीर पर अगर कोई चोट के निशान नहीं हैं तो इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि पीड़िता की सहमति से सब कुछ हुआ था ।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 साल पुराने फ़ैसले को बदल दिया है और 41 साल के एक व्यक्ति को 1996 में एक लड़की से बलात्कार का दोषी माना है। न्यायमूर्ति इंद्रजीत महंती और वीके जाधव ने चोट के निशान और इसे सहमति बताने के बारे में कहा, "पीड़िता के शरीर पर किसी तरह का चोट का निशान नहीं होने का निष्कर्ष यह नहीं निकाला जा सकता कि पीड़िता ने अपनी सहमति दी है और इसका यह अर्थ भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया।प्रतिरोध नहीं होना या शरीर पर किसी तरह का चोट का निशान नहीं होने का सहमति देने से कोई लेना-देना नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने जुलाई 1997 में नासिक की अतिरिक्त सत्र अदालत के उस फ़ैसले को चुनौती दी जिसमें मछिन्द्र सोनवाने को बरी कर दिया गया था। उस समय वह 19 साल का था और उस पर उस समय 11 साल की लड़की से बलात्कार करने का आरोप था। हाईकोर्ट ने अब निचली अदालत के इस फ़ैसले से असहमति जताई है जिसमें उसने लड़की की उम्र 16 साल निर्धारित की थी। हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने इस बारे में यांत्रिक तरीक़े से पेश आया। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने बहुत ही अगंभीर तरीक़े से इस मसले पर निर्णय किया। इसके बाद कोर्ट ने राज्य के पक्ष में फ़ैसला दिया और कहा कि मौखिक और काग़ज़ी रेकर्ड पर ग़ौर करने के बाद उसका मानना है कि पीड़िता एक बहुत ही ग़रीब घर में पैदा हुई थी, वह शिक्षित नहीं थी और वह अपने पिता के लिए दवा लेने आरोपी के पिता के दुकान पर गई थी। उसे सिर दर्द था और वह एक तरह से इसकी दवा के लिए दुकानदार से भीख माँगी और इस क्रम में उसे निश्चित ही काफ़ी शर्म और पीड़ा झेलनी पड़ी होगी… "…इसके बावजूद कि यह घटना 1996 में हुई, हम न्याय दिलाकर इस संस्था में आम लोगों के भरोसे को बनाए रखना चाहते हैं।" इसके बाद इस अपील को स्वीकार कर लिया गया और कोर्ट ने सोनवाने को सात साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई। कोर्ट ने नासिक ज़िला के ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह पीड़िता कहाँ है इसका पता लगाए और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के तहत मुआवज़ा प्राप्त करने के लिए उससे आवेदन ले।

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