हर करदाता को देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देना होता है. यह योगदान वह समय पर कर का भुगतान कर करता है. आम करदाता के लिए 31 जुलाई, 2018 इस वर्ष कर भुगतान की अंतिम तारीख है. ऐसे में करदाता को कुछ नियमों की जानकारी होना आवश्यक है. यह जानकारी उन करदाताओं के लिए बेहद जरूरी है जो अपना आयकर रिटर्न खुद भरते हैं. कुछ लोगों को आय कम होने की वजह से कर से छूट प्राप्त होती है जबकि बाकी सभी को अपना आयकर रिटर्न दाखिल करना होता है. इसी के आधार पर सरकार को कर देना होता है. सरकार अपनी ओर से कई माध्यमों के जरिए लोगों को कर में छूट का लाभ देती है. इसके लिए सरकार ने कई नियम बनाएं हैं. ये नियम आयकर कानून के तहत लोगों को छूट प्रदान करते हैं.
अकसर देखा गया है कि जानकारी के अभाव में कई करदाता या तो नियम कानून की उलझन में फंस जाते हैं जबकि कई बार करदाता ठीक से रिटर्न भर नहीं पाते हैं. ऐसा भी होता है कि ठीक से रिटर्न नहीं भर पाने की वजह से उन्हें नोटिस का सामना कर पड़ता है और आयकर विभाग के चक्कर काटने पड़ते हैं. ऐसे में करदाता किसी ने किसी टैक्स प्लानर, सीए, अकाउंटेट, या फिर किसी जानकार की मदद लेता है.
यहां पर आयकर की धारा 80 सी के बारे में जानकारी दी जा रही है.
क्या है आयकर की धारा 80सी
आयकर अधिनियम [1] की धारा 80सी कुछ निवेशों और व्यय को करों से छूट की अनुमति देता है. इस धारा के अंतर्गत कुल सीमा रु 1,50,000 (एक लाख पचास हज़ार रुपये), जो निम्नलिखित में से किसी में भी किया जा सकता है.
पीएफ और पीपीएफ में निवेश
भविष्य निधि (PF) या सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) में पैसा जमा करवाने से कर में छूट मिलती है.. पीपीएफ 7.6% सालाना चक्रवृद्धि ब्याज (समय समय पर ब्याज दल बदलती रहती है) मिल रहा है. उसमें अधिकतम 1,50,000 लाख रुपये प्रति वर्ष जमा कराया जा सकता है. यह एक लंबे समय का निवेश है. इसके अलावा, कर्मचारी भविष्य निधि फंड (EPF) है जो व्यक्ति के वेतन से काटा जाता है. यह बेसिक वेतन घटक के लगभग 10% से 12% होता है. EPF से घर, शादी, या चिकित्सा से संबंधित कुछ खर्चों के लिए निकासी का विकल्प है. यह 8.33:3.67 के अनुपात में पेंशन निधि और भविष्य निधि में वितरित किया जाता है.
पेंशन फंड में निवेश
पेंशन योजनाओं में अलग से भी निवेश किया जा सकता है. किसी भी बीमा कंपनी के एनुइटी प्लान में पैसा लगाने पर टैक्स छूट है. ये पैसा इक्विटी और ऋण के विभिन्न संयोजन में लगाया का निवेश करता है. उम्र के आधार पर 50% तक इक्विटी में जा सकता है.
राष्ट्रीय बचत पत्र (NSC)में निवेश
सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय बचत पत्र (National Savings Scheme) में निवेश भी आयकर के नियमों के तहत कर छूट का रास्ता उपलब्ध कराते हैं.
सावधि जमा (Fixed Deposits): फिक्स्ड डिपॉजिट आम बैंक एफडी से कम ब्याज पर मिलता है. ऐसे डिपॉजिट में 5 साल का लॉक इन पीरियड रहता है. हालांकि इस एफडी पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगाया जाता है.
होम लोन पर दिया जाने वाला प्रिंसिपल
आवासीय ऋणों के मूलधन अदायगी के लिए भुगतान. इसके अलावा किसी भी पंजीकरण शुल्क या स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान तथा ब्याज भी कर छूट के नियमों के तहत राहत देते हैं. होम लोन का रीपेमेंट (सिर्फ प्रिंसिपल) का भी टैक्स में लाभ मिलता है. हाउसिंग लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर साल भर में अदा की जा रही रकम को भी आप अपनी टैक्सेबल इनकम से घटा सकते हैं.
दो बच्चों की ट्यूशन फीस
बच्चों के लिए किसी भी स्कूल या कॉलेज या विश्वविद्यालय या इसी तरह की संस्था को ट्यूशन फीस के रूप में किया गया भुगतान. (केवल 2 बच्चों के लिए) या विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग शुल्क के लिए.
डाकघर निवेश - सुकन्या समृद्धि योजना (Sukanya Samridhi Yojna)एक कर बचत करने की योजना है. इसमे बच्ची के नाम से अकाउंट खुलवाना पड़ता है. इस खाते में एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 1000 और अधिकतम 150000 तक सालाना जमा कराया जा सकता है. जमा की गई राशि की 80 सी में छूट ली जा सकती है. इस अकाउंट से मिलने वाला ब्याज भी टैक्स फ्री होता है.
मार्केट में निवेश कर बचा सकते हैं टैक्स - इनकम टैक्स 80सी के तहत तीन तरह से इनकम टैक्स बचा सकते हैं.
ईएलएसएस(ELSS) : टैक्स में छूट पाने का यह एक बेहद आसान तरीका है. दरअसल, यह एक प्रकार का डाइवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड है, जिसे इनकम टैक्स कानून के तहत टैक्स में छूट के लिए खरीदा जाता है. इसकी अहम बात यह है कि आप टैक्स बचाने के साथ-साथ इसमें निवेश किए गए पैसे में वृद्धि के भी हकदार है. यह स्कीम तीन साल के लॉक इन पीरियड के साथ उपलब्ध है. मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ाव का इस पर कम ही असर देखने को मिलता है. यानी इसमें निवेश कर आप दोहरे फायदे में आ सकते हैं.
यूलिप (ULIP): यूलिप में निवेश की गई रकम को ईक्विटी और इंश्योरेंस प्लान दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यानी निवेश राशि के एक हिस्से को बीमा के लिए तो दूसरे को ईक्विटी के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. यह सेक्शन 80 सी के तहत टैक्स में छूट का भी हकदार है.
इंफ्रा बॉन्ड्स (Infra Bonds): इंफ्रा बॉन्ड्स के जरिये दरअसल, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश किया जाता है. इनकम टैक्स नियम के सेक्शन 80 सी के तहत इसमें निवेश कर आप कुछ टैक्स बचा सकते हैं.
अन्य निवेश -
सीनियर सिटिजन सेविंग स्कीम ( SCSS):सीनियर सिटिजन्स सेविंग्स स्कीम (SCSS) 60 साल या ज्यादा उम्र के इंडियन सिटिजन्स के लिए होती है. यह पांच साल की डिपॉजिट स्कीम है, जिसमें हर तीन महीने पर ब्याज मिलता है. इसमें अकेले या जाइंट होल्डर के साथ मिलकर ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये तक इन्वेस्ट किया जा सकता है. मैच्योरिटी पर SCSS अकाउंट को तीन साल के लिए एक्सटेंड किया जा सकता है.
नाबार्ड बॉन्ड (NABARD Bonds): नाबार्ड लंबी अवधि के लिए जीरो कूपन बॉण्ड जारी करता है. यह 10 साल के लिए होता है.
लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम (Insurance Premium): जीवन बीमा पॉलिसी साल भर में जो भी प्रीमियम दिया जाता है, उसे अपनी कुल टैक्सेबल इनकम में से घटाया जा सकता है. टैक्स में छूट के लिए प्रीमियम की रकम कुल बीमा राशि (सम एश्योर्ड) के 20 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
अकसर देखा गया है कि जानकारी के अभाव में कई करदाता या तो नियम कानून की उलझन में फंस जाते हैं जबकि कई बार करदाता ठीक से रिटर्न भर नहीं पाते हैं. ऐसा भी होता है कि ठीक से रिटर्न नहीं भर पाने की वजह से उन्हें नोटिस का सामना कर पड़ता है और आयकर विभाग के चक्कर काटने पड़ते हैं. ऐसे में करदाता किसी ने किसी टैक्स प्लानर, सीए, अकाउंटेट, या फिर किसी जानकार की मदद लेता है.
यहां पर आयकर की धारा 80 सी के बारे में जानकारी दी जा रही है.
क्या है आयकर की धारा 80सी
आयकर अधिनियम [1] की धारा 80सी कुछ निवेशों और व्यय को करों से छूट की अनुमति देता है. इस धारा के अंतर्गत कुल सीमा रु 1,50,000 (एक लाख पचास हज़ार रुपये), जो निम्नलिखित में से किसी में भी किया जा सकता है.
पीएफ और पीपीएफ में निवेश
भविष्य निधि (PF) या सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) में पैसा जमा करवाने से कर में छूट मिलती है.. पीपीएफ 7.6% सालाना चक्रवृद्धि ब्याज (समय समय पर ब्याज दल बदलती रहती है) मिल रहा है. उसमें अधिकतम 1,50,000 लाख रुपये प्रति वर्ष जमा कराया जा सकता है. यह एक लंबे समय का निवेश है. इसके अलावा, कर्मचारी भविष्य निधि फंड (EPF) है जो व्यक्ति के वेतन से काटा जाता है. यह बेसिक वेतन घटक के लगभग 10% से 12% होता है. EPF से घर, शादी, या चिकित्सा से संबंधित कुछ खर्चों के लिए निकासी का विकल्प है. यह 8.33:3.67 के अनुपात में पेंशन निधि और भविष्य निधि में वितरित किया जाता है.
पेंशन फंड में निवेश
पेंशन योजनाओं में अलग से भी निवेश किया जा सकता है. किसी भी बीमा कंपनी के एनुइटी प्लान में पैसा लगाने पर टैक्स छूट है. ये पैसा इक्विटी और ऋण के विभिन्न संयोजन में लगाया का निवेश करता है. उम्र के आधार पर 50% तक इक्विटी में जा सकता है.
राष्ट्रीय बचत पत्र (NSC)में निवेश
सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय बचत पत्र (National Savings Scheme) में निवेश भी आयकर के नियमों के तहत कर छूट का रास्ता उपलब्ध कराते हैं.
सावधि जमा (Fixed Deposits): फिक्स्ड डिपॉजिट आम बैंक एफडी से कम ब्याज पर मिलता है. ऐसे डिपॉजिट में 5 साल का लॉक इन पीरियड रहता है. हालांकि इस एफडी पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगाया जाता है.
होम लोन पर दिया जाने वाला प्रिंसिपल
आवासीय ऋणों के मूलधन अदायगी के लिए भुगतान. इसके अलावा किसी भी पंजीकरण शुल्क या स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान तथा ब्याज भी कर छूट के नियमों के तहत राहत देते हैं. होम लोन का रीपेमेंट (सिर्फ प्रिंसिपल) का भी टैक्स में लाभ मिलता है. हाउसिंग लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर साल भर में अदा की जा रही रकम को भी आप अपनी टैक्सेबल इनकम से घटा सकते हैं.
दो बच्चों की ट्यूशन फीस
बच्चों के लिए किसी भी स्कूल या कॉलेज या विश्वविद्यालय या इसी तरह की संस्था को ट्यूशन फीस के रूप में किया गया भुगतान. (केवल 2 बच्चों के लिए) या विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग शुल्क के लिए.
डाकघर निवेश - सुकन्या समृद्धि योजना (Sukanya Samridhi Yojna)एक कर बचत करने की योजना है. इसमे बच्ची के नाम से अकाउंट खुलवाना पड़ता है. इस खाते में एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 1000 और अधिकतम 150000 तक सालाना जमा कराया जा सकता है. जमा की गई राशि की 80 सी में छूट ली जा सकती है. इस अकाउंट से मिलने वाला ब्याज भी टैक्स फ्री होता है.
मार्केट में निवेश कर बचा सकते हैं टैक्स - इनकम टैक्स 80सी के तहत तीन तरह से इनकम टैक्स बचा सकते हैं.
ईएलएसएस(ELSS) : टैक्स में छूट पाने का यह एक बेहद आसान तरीका है. दरअसल, यह एक प्रकार का डाइवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड है, जिसे इनकम टैक्स कानून के तहत टैक्स में छूट के लिए खरीदा जाता है. इसकी अहम बात यह है कि आप टैक्स बचाने के साथ-साथ इसमें निवेश किए गए पैसे में वृद्धि के भी हकदार है. यह स्कीम तीन साल के लॉक इन पीरियड के साथ उपलब्ध है. मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ाव का इस पर कम ही असर देखने को मिलता है. यानी इसमें निवेश कर आप दोहरे फायदे में आ सकते हैं.
यूलिप (ULIP): यूलिप में निवेश की गई रकम को ईक्विटी और इंश्योरेंस प्लान दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यानी निवेश राशि के एक हिस्से को बीमा के लिए तो दूसरे को ईक्विटी के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. यह सेक्शन 80 सी के तहत टैक्स में छूट का भी हकदार है.
इंफ्रा बॉन्ड्स (Infra Bonds): इंफ्रा बॉन्ड्स के जरिये दरअसल, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश किया जाता है. इनकम टैक्स नियम के सेक्शन 80 सी के तहत इसमें निवेश कर आप कुछ टैक्स बचा सकते हैं.
अन्य निवेश -
सीनियर सिटिजन सेविंग स्कीम ( SCSS):सीनियर सिटिजन्स सेविंग्स स्कीम (SCSS) 60 साल या ज्यादा उम्र के इंडियन सिटिजन्स के लिए होती है. यह पांच साल की डिपॉजिट स्कीम है, जिसमें हर तीन महीने पर ब्याज मिलता है. इसमें अकेले या जाइंट होल्डर के साथ मिलकर ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये तक इन्वेस्ट किया जा सकता है. मैच्योरिटी पर SCSS अकाउंट को तीन साल के लिए एक्सटेंड किया जा सकता है.
नाबार्ड बॉन्ड (NABARD Bonds): नाबार्ड लंबी अवधि के लिए जीरो कूपन बॉण्ड जारी करता है. यह 10 साल के लिए होता है.
लाइफ इंश्योरेंस प्रीमियम (Insurance Premium): जीवन बीमा पॉलिसी साल भर में जो भी प्रीमियम दिया जाता है, उसे अपनी कुल टैक्सेबल इनकम में से घटाया जा सकता है. टैक्स में छूट के लिए प्रीमियम की रकम कुल बीमा राशि (सम एश्योर्ड) के 20 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
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