रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शेर शाह सूरी ने भारत मे अपने शासन (1540-1545) के दौरान किया था। भारत में नोटों को छापने का काम भारतीय रिज़र्व बैंक और सिक्कों को ढालने का काम भारत सरकार करती है | भारत में सबसे पहला वाटर मार्क वाला नोट 1861 में छपा था | वर्तमान में भारत समेत 8 देशों की मुद्राओं को रुपया कहा जाता है | हिंदी और अंग्रेजी के अलावा भारतीय नोट में 15 भाषाओं का इस्तेमाल होता है। इस लेख में हम भारतीय रुपये की जिंदगी से से जुडी पूरी यात्रा का वर्णन कर रहे हैं |
I. फ्रांस की अर्जो विगिज
II. अमेरिका का पोर्टल
III. स्वीडन का गेन और पेपर फैब्रिक्स ल्यूसेंटल।
भारत में नोट कहां पर छपते हैं ?
देश में चार बैंक नोट प्रेस, चार टकसाल और एक पेपर मिल है। नोट प्रेस के देवास (मध्य प्रदेश), नासिक (महाराष्ट्र), सालबोनी (पश्चिम बंगाल)और मैसूर(कर्नाटक) में हैं।
देवास की नोट प्रेस में एक साल में 265 करोड़ नोट छपते हैं। यहाँ पर 20, 50, 100, 500 रुपए मूल्य के नोट छपते हैं | मजेदार बात यह है कि देवास में ही नोटों में प्रयोग होने वाली स्याही का उत्पादन भी किया जाता है |
करेंसी प्रेस नोट नाशिक: सन 1991 से यहाँ पर 1, 2, 5 10, 50 100 के नोट छापे जाते हैं | पहले यहाँ पर 50 और 100 रुपये के नोट नहीं छापे जाते थे |
मध्य प्रदेश के ही होशंगाबाद में सिक्यॉरिटी पेपर मिल है। नोट छपाई पेपर होशंगाबाद और विदेश से आते हैं। 1000 के नोट मैसूर में छपते हैं।
भारत में सिक्के कहाँ ढलते हैं ?
भारत में चार जगहों पर सिक्के ढाले जाते हैं |
1. मुंबई
2. कोलकाता
3. हैदराबाद
4. नोएडा
निशान से पता चलता है कहां ढला है सिक्का ?
हर सिक्के पर एक निशान छपा होता है जिसको देखकर आपको पता चल जाएगा कि यह किस मिंट का है। यदि सिक्के में छपी तारीख के नीचे एक डायमंड टूटा नजर आ रहा है तो ये चिह्न हैदराबाद मिंट का चिह्न है। नोएडा मिंट के सिक्कों पर जहां छपाई का वर्ष अंकित किया गया है उसके ठीक नीचे छोटा और ठोस डॉट होता है। इसे सबसे पहले 50 पैसे के सिक्के पर बनाया गया था। 1986 में इन सिक्कों पर ये मार्क अंकित किया जाना शुरू हुआ था। इसके अलावा मुंबई और कोलकाता में मिंट है।
नोट किस चीज से बनाये जाते हैं ?
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोट तैयार करने के लिए कॉटन से बने कागज और विशिष्ट तरह की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय करंसी नोट तैयार करने के लिए जिस कागज का इस्तेमाल होता है, उसमें कुछ का प्रोडक्शन महाराष्ट्र स्थित करंसी नोट प्रेस (सीएनपी) और अधिकांश का प्रोडक्शन मध्य प्रदेश के होशंगाबाद पेपर मिल में ही होता है। कुछ पेपर इम्पोर्ट भी किया जाता है।
नोट छापने के लिए ऑफसेट स्याही का निर्माण मध्य प्रदेश के देवास स्थित बैंकनोट प्रेस में होता है। जबकि नोट पर जो उभरी हुई छपाई नजर आती है, उसकी स्याही सिक्कम में स्थित स्वीस फर्म की यूनिट सिक्पा (एसआईसीपीए) में बनाई जाती है।
भारत में हर साल कितने नोट छापे जाते हैं ?
रिजर्व बैंक के अनुसार, भारत हर साल 2,000 करोड़ करेंसी नोट छापता है। इसकी 40 प्रतिशत लागत कागज और स्याही के आयात में जाती है। ये कागज जर्मनी, जापान और ब्रिटेन जैसे देशों से आयात किया जाता है।
यह कौन तय करता है कि कितने नोट और कितने मूल्य के नोट छापे जाने हैं ?
यह भारतीय रिज़र्व बैंक तय करता है| छपने वाले नोटों की मात्रा पूरी अर्थव्यवस्था में नोटों के परिचालन, गंदे नोटों और आरक्षित आवश्यकताओं के आधार पर तय की जाती है |
यह कौन तय करता है कि कितने सिक्कों की ढलाई की जानी है ?
यह तय करने का अधिकार सिर्फ सरकार को है | हालांकि एक रुपये का नोट भी वित्त मंत्रालय ही छापता है और उसके ऊपर वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते हैं |
नोट कैसे छपते हैं ?
विदेश या होशंगाबाद से आई पेपर शीट एक खास मशीन सायमंटन में डाली जाती है। फिर एक अन्य मशीन जिसे इंटाब्यू कहते हैं उससे कलर किया जाता है। यानी कि शीट पर नोट छप जाते हैं। इसके बाद अच्छे और खराब नोट की छटनी हो जाती है। एक शीट में करीब 32 से 48 नोट होते हैं। खराब को निकालकर अलग करते हैं।
(एक शीट पर छापे हुए नोट्स)
बैंक नोट की संख्या चमकीली स्याही से मुद्रित होती है। बैंक नोट में चमकीले रेशे होते हैं। अल्ट्रावायलेट रोशनी में देखे जा सकते हैं। कॉटन और कॉटन के रेशे मिश्रित एक वॉटरमार्क पेपर पर नोट मुद्रित किया जाता है। भारत में सबसे पहला वाटर मार्क वाला नोट 1861 में छपा था |
नोटों की क्रम संख्या कैसे दी जाती है ?
हर वित्तीय वर्ष के शुरू में यह अनुमान लगाया जाता है कि किस वर्ग के कितने नोट छापे जाने हैं, कितने नोटों की आपूर्ति करनी है और कितने बदले जाने हैं| भारतीय रिज़र्व बैंक के पास चार प्रिंटिंग प्रैस हैं उनमें यह काम बांट दिया जाता है| किसी भी वर्ग के नोट एक करोड़ तक की संख्या में छापे जाते हैं| उसके बाद उस संख्या के आगे अंग्रेज़ी वर्णमाला के अक्षर जोड़ते जाते हैं| वर्णमाला के अक्षर का चयन बेतरतीब ढंग से किया जाता है| यह आमतौर पर कई साल के बाद दोहराया जाता है|
बेकार हो चुके नोटों को कहां जमा किया जाता है ?
नोट तैयार करते वक्त ही उनकी ‘शेल्फ लाइफ’ (सही बने रहने की अवधि) तय की जाती है। यह अवधि समाप्त होने पर या लगातार प्रचलन के चलते नोटों में खराबी आने पर रिजर्व बैंक इन्हें वापस ले लेता है। बैंक नोट व सिक्के सर्कुलेशन से वापस आने के बाद इश्यू ऑफिसों में जमा कर दिए जाते हैं।
कटे फटे नोटों का क्या किया जाता है ?
जब कोई नोट पुराना हो जाता है या दुबारा चलन में आने के योग्य नहीं रहता है तो उसे व्यावसायिक बैंकों के जरिये जमा कर लिया जाता है और दुबारा बाजार में नहीं भेजा जाता है | अब तक कि प्रथा यह थी कि उन पुराने नोटों को जला दिया जाता था परन्तु अब RBI ने पर्यावरण की रक्षा के लिए जलाने के स्थान पर 9 करोड़ रुपये की एक मशीन आयात की | यह मशीन पुराने नोटों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है फिर इन टुकड़ों को गलाकर ईंट के आकर में बनाया जाता है | ये ईंटें कई कामों में प्रयोग की जाती हैं |
(नोटों से बनी ईटें)
ज्ञातब्य हो कि भारत में हर साल 5 मिलियन नोट चलन से बाहर हो जाते हैं जिनका कुल वजन 4500 टन के बराबर होता है| यह बात चिंताजनक है कि जितनी मात्रा में भारत को नोट छापने के लिए स्याही और कागज की जरुरत पड़ती है उतना उत्पादन यहाँ नही हो पाता है और सरकार को विदेशों से इन दोनों चीजों का आयात करना पड़ता है | इसी के विकल्प के रूप में सरकार ने 2010 से देश के कुछ हिस्सों में प्रयोग के तौर पर प्लास्टिक के 10 रुपये के नोटों का चलन शुरू किया है |
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